इन गुजरे नए सालो में “मैं” क्या क्या हुआ
एक बार मैं सायना हो गया
दूजी बार सहेतमंद हो गया
हद हो गई जब मैं देशभक्त हो गया
कुछ दिन क्रांतिकारी रहा
फिर राष्ट्रवादी हो गया
सेक्युलर बना फिर हिन्दू हो गया
कुछ दिन मास खाया फिर शाकाहारी हो गया
कभी ज्ञान पेले, कभी अधियात्म
कभी सिर्फ दूध पिये, कभी सिर्फ रम
गम भुलाने की बूटी भी रखी
कभी खुशियों को खर्चने का हौसला हो गया
एक बार मैं बेहूदा हो गया
दूजी बार हैंडसम हो गया
हद हो गई जब इस बात का यकीं हो गया
कुछ दिन निडर रहा
फिर जग कठोर हो गया
हँसमुख बना फिर गंभीर हो गया
कुछ दिन हँस बोल लिया फिर अंतर्मुखी हो गया
कभी रहे अकेले, कभी मलंग
कभी सिर्फ धर्म किया, कभी सिर्फ कलंक
भूल जाने की बात भी रखी
कभी यादों को सज़ा कर खिलौना हो गया।
एक बार मैं सायना हो गया..
मानव
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