पानी में तेल की बारिश कर गए, लिपट कर वो मुझे अपना कर गए
हम है के उन्हें बरसो पुकारते रहे, वो है के हम को किनारा कर गए
उसने जताया भी बताया भी ठुकराया भी, हर अदा हक़ से अता कर गए
हम चुप रहे सब सहे अजनबी रहे, हर सितम वफ़ा को अदा कर गए
वो करीब आ कर भी नजदीक न हुए, वो दूर रह कर मुझे बिखरा कर गए
आसमान बनके छाये जब भी दूर रहे, वो आगो़श में जब आये जर्रा कर गए
~ राजेश कुट्टन ‘मानव’